शेयर मार्केट क्या है सीखें :
1.Share का अर्थ होता हैं - “हिस्सा” और स्टॉक मार्केट की भाषा में “शेयर” का मतलब हैं- “कंपनियों में हिस्सा”। जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं तो कंपनी के हिस्सेदार बन जाते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी कंपनी ने कुल 1 लाख शेयर jaari किये हैं और आपने उसमें से 10 हजार Shares खरीद लिए हैं तो आप उस कंपनी के 10% हिस्सेदार बन जाते हैं। आप जब चाहें तब इन शेयर्स को स्टॉक मार्केट में बेच सकते हैं।
2.इक्विटी शेयर क्या है
इक्विटी शेयर , शेयर का सबसे पोपुलर प्रकार है, आम तौर पर हम जिन शेयर की बात करते है, वो Equity Share ही होते है, लेकिन हम इक्विटी कहने के बजाये सिर्फ शेयर कहते है,’ जब तक कि उन शेयर के पहले कुछ और ना लिखा हो, जैसे- प्रेफेरेंस शेयर, या DVR शेयर।
दूसरे शब्दों में
इक्विटी शेयर को आर्डिनरी शेयर के नाम से भी जाना जाता है इसके आलावा इक्विटी शेयर जिनके पास होता है, उन्हें कम्पनी का असली मालिक कहा जाता है, aur उन्हें इक्विटी शेयर होल्ल्डर भी कहा जाता है।
स्टॉक Exchange क्या है?
स्टॉक एक्सचेंज वह जगह है जहाँ शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं। स्टॉक मार्किट में खरीदे और बिकने वाले शेयर किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। जैसे की स्टॉक्स, बांड्स, डिबेंचर्स, फ्यूचर्स, ओप्संस और कमोडिटी है।
उन कंपनियों को Stock Exchange में सूचीबद्ध नहीं किया जाता है जो Over The Counter Market में ट्रेड होती हैं। क्योकि वे शेयर्स बहुत अधिक जोखिम वाले होते हैं और Stock Exchange में Listed ना होने की वजह से उनको बेचना काफी मुश्किल हो जाता है। जिसकी वजह से इसमें Liquidity कम रहती है।
3.शेयर बाजार क्या है
शेयर बाजार (Share Market) एक ऐसा बाजार होता है जहाँ पर अलग अलग कंपनी के शेयर ख़रीदे और बेचे जाते हैं। ये किसी भी दूसरे बाजार की तरह ही होता है। जहाँ पर जाकर लोग शेयर की खरीद बिक्री का काम करते हैं। इसका काम अब ऑफलाइन तक सीमित नहीं है बल्कि अब ये ऑनलाइन भी हो चुका है। दूसरे शब्दों में Stock Market वह जगह होती हैं जहाँ पर Shares, Debentures, Mutual Funds और अन्य Securities (प्रतिभूतियों) को ख़रीदा और बेचा जाता हैं। Shares को मुख्य रूप से Stock Exchange के माध्यम से ख़रीदा और बेचा जाता हैं और भारत में BSE (Bombay Stock Exchange) और NSE (National Stock Exchange) दो मुख्य Stock Exchange हैं।
4.Share Market दो प्रकार के होते हैं।
- Primary Share Market
- Secondary Share Market
Primary Share Market :
Primary Share Market में Company के शेयर को पहली बार Issue किया जाता है। कंपनी को जब भी सबसे पहले Share Market में List किया जाता है और स्टॉक Issue होते हैं तो ये सब Primary Share Market में ही होता है।
जब Company पहली बार Shares को बेचती है तो उसे Initial Public Offering या IPO कहा जाता है। जिसके बाद कंपनी सार्वजनिक हो जाती है। IPO के लिए जाते समय कंपनी को अपने बारे में, उसके Financials, Promoters एवं उसके Businesses, Stock की जानकारी देनी होती है।
Secondary Share Market:
Secondary Share Market में पहले से Listed Companies के शेयर को खरीदकर और बेचकर Trading की जाती है जब हम Normally शेयर Market में पैसे लगाने की बात करते हैं। हम Secondary Share Market की ही बात कर रहे होते हैं Secondary शेयर मार्किट में ही एक Stock या Share की कीमत लगाई जाती है और उसे फायदे या नुकसान के साथ खरीदा या बेचा जाता है।
5.Shares कैसे खरीदें
सभी नियमों को ध्यान में रखकर जब आप Stock Market में Invest करने का निर्णय ले लेते हैं तो आपका अगला कदम शेयर बाज़ार में निवेश प्रक्रिया को शुरू करना हो सकता है। इसके लिए सबसे पहले आपको किसी Stock Broker के साथ Trading और Demat Account खोलना होता है।
Demat Account
जिस तरह आप बैंक अकाउंट में रूपये जमा कर सकते हैं उसी तरह Demat Account में आपके निवेश से संबंधी सभी Securities जैसे Share, Bonds, Government Securities, Mutual Funds आदि को Electronic Form में Store किया जाता हैं। आपके पास एक बैंक अकाउंट तो जरुर होगा, उसी तरह शेयर मार्केट में ट्रेड करने के लिए डीमैट account की जरुरत होती है, डीमैट अकाउंट आपके बैंक अकाउंट की तरह ही होती है। बस अंतर इतना है कि बैंक अकाउंट में आप अपने कैपिटल को डिजिटल फॉर्मेट में रखते हैं उसी तरह डीमैट अकाउंट में शेयर को डिजिटल फॉर्मेट में जमा करते हैं।
Trading Account :
डीमैट account की तरह, शेयर बाजार में निवेश के लिए ट्रेडिंग अकाउंट भी महत्वपूर्ण है। यह आपको शेयर बाजार में शेयरों और अन्य सिक्योरिटीज को इलेक्ट्रॉनिक रूप में खरीदने या बेचने की अनुमति देता है यह Account आप किसी अच्छे Broker के पास खोल सकते हैं और ऑनलाइन सुविधा होने के कारण आप इस अकाउंट की सहायता से कभी भी शेयर्स खरीद और बेच सकते हैं।
6.शेयर बाजार में निवेश
आपको सबसे पहले किसी ब्रोकर की मदद से डीमैट अकाउंट खुलवाना होगा. इसके बाद आपको डीमैट अकाउंट को अपने बैंक अकाउंट से लिंक करना होगा. बैंक अकाउंट से आप अपने डीमैट अकाउंट में फंड ट्रांसफर कीजिये और ब्रोकर की वेबसाइट से खुद लॉग इन कर या उसे आर्डर देकर किसी कंपनी के शेयर खरीद लीजिये. इसके बाद वह शेयर आपके डीमैट अकाउंट में ट्रांसफर हो जायेंगे. आप जब चाहें उसे किसी कामकाजी दिन में ब्रोकर के माध्यम से ही बेच सकते हैं.
7.शेयर बाजार में पैसा निवेश
शेयर मार्किट में Invest करने से पहले हमारे सामने कई सवाल होते हैं। जैसे की how to invest in share market,, कहाँ निवेश और कैसे निवेश करें या निवेश करने में कोई धोखा तो नहीं। यदि इन सभी बातों का ध्यान रखा जाए तो हम आसानी से शेयर मार्किट में निवेश कर सकते हैं। जब भी कभी निवेश करना हो तो उस कंपनी के हालतो पर अवश्य नजर रखें।
शेयर विकास दर कम हो या महंगाई दर ज्यादा हो तो बड़ी कंपनियों पर नजर रखे। क्योकि ऐसी स्थितियों में छोटी कंपनियों के मुकाबले बड़ी कपनियों के शेयर अच्छी स्थति में होते हैं। जब भी शेयर बाजार की हालत थोड़ी कमजोर हो तो तो बड़ी कंपनियों पर नजर रखें कोई भी शेयर खरीदने और बेचने के लिए हमेशा एक स्टॉक ब्रोकर की जरुरत होती है। जब आप स्टॉक मार्किट में invest करने के लिए स्टॉक ब्रोकर के पास जाते हैं। तो आपको सबसे पहले उनके पास से दो account खोलने पड़ते हैं। demat account aur trading account . यह account खोलने के बाद आप आसानी से किसी भी शेयर की खरीदी और बिक्री कर सकते हैं।
आपको ऐसा ब्रोकर चुनना चाहिए जो आपको कम फीस में अच्छी सेवा दे शेयर बाजार में पैसे लगाना ही सब कुछ नहीं है बल्कि आपको financial plan की भी जरुरत होती है। invest करने से पहले आपको अपनी financial situation, cash flow और रिस्क लेने की क्षमता पर विचार करना चाहिए शेयर बाजार में invest करने से पहले आपको उसके बारे में पूरी जानकारी होना बहुत जरुरी है। वरना आपको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए कभी भी शेयर मार्किट में इन्वेस्ट करने में जल्दबाजी में कोई भी फैसला ना लें।
8.निवेश के लिए महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंटस पैन कार्ड
दरअसल, भारत में किसी भी वित्तीय लेनदेन के लिए पैन नंबर आवश्यक होता है। यदि आपका पैन कार्ड नहीं बना है तो इसे बनवा लीजिए।
केवाईसी (KYC) डॉक्यूमेंट
इंटरनेट बैंकिंग
स्टॉक मार्केट से आप जो भी शेयर खरीदेंगे, उसका भुगतान करने के लिए आपको अपने ब्रोकर को पेमेंट देना होगा, क्योंकि आपका ब्रोकर ही आपके पैसे को शेयर बेचने वाले तक पहुंचाएगा और आपने जो भी शेयर ख़रीदा है, वह शेयर आपके डीमैट एकाउंट में जमा कर देगा। यही वजह है कि आपको अपने ब्रोकर को भुगतान करने के लिए अनिवार्य रूप से एक ऑनलाइन इन्टरनेट बैंकिंग अकाउंट की जरूरत पड़ती है, जिसके माध्यम से आप अपने ब्रोकर को पेमेंट दे सकें। आपके सभी तरह के भुगतान का रिकॉर्ड रखने के लिए प्रत्येक स्टॉक ब्रोकर एक एकाउंट खोलता है, जिसे ट्रेडिंग एकाउंट कहते हैं। दरअसल, आपको कोई भी स्टॉक खरीदने के लिए सर्वप्रथम अपने इसी ट्रेडिंग एकाउंट में पैसे जमा करने होंगे, एवं शेयर बेचने पर आपका ब्रोकर इसी ट्रेडिंग एकाउंट में आपको शेयर के बदले पैसा जमा कर देंगा। इसी तरह आपकी शेयर्स की खरीद-बिक्री चलती रहेगी।
स्टॉक ब्रोकर का चयन
कोई भी व्यक्ति direct स्टॉक एक्सचेंज से स्टॉक खरीद या बेच नहीं सकता है। इसलिए स्टॉक एक्सचेंज तक हमारे स्टॉक खरीदने या बेचने के आर्डर को किसी स्टॉक ब्रोकर द्वारा ही पूरा किया जाता है। तभी तो शेयर खरीदने के लिए या स्टॉक मार्केट में निवेश के लिए किसी को भी एक स्टॉक ब्रोकर की जरूरत होती है, जो एक ऐसी एजेंसी होती है जो स्टॉक एक्सचेंज पर स्टॉक खरीदने या बेचने के लिए प्राधिकृत होती है।
डीमैट एकाउंट
किसी भी व्यक्ति द्वारा ख़रीदे गए शेयर को अपने पास रखने के लिए हमें अनिवार्य रूप से डीमैट एकाउंट की जरूरत होती है, जिसमें ख़रीदे गए शेयर इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में जमा (क्रेडिट) रहते हैं, लेकिन जब इसे बेचा जाता है तो इसे बेचने पर भी इस अकाउंट से डेबिट कर दिए जाते हैं। प्रायः हरेक बार यही सिलसिला चलता रहता है।
ट्रेडिंग एकाउंट
किसी भी शेयर को खरीदने या बेचने का काम ट्रेडिंग एकाउंट की मदद से ही किया जाता है जिसमें हमें एक यूजर आईडी और पासवर्ड मिलता है। प्रायः इसकी मदद से ही हम लोग स्टॉक ब्रोकर के सॉफ्टवेयर या सिस्टम का उपयोग करके कोई भी स्टॉक खरीदने अथवा बेचने का आर्डर देते हैं।
शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव
किसी कंपनी के कामकाज, ऑर्डर मिलने , नतीजे बेहतर रहने, मुनाफा बढ़ने/घटने जैसी जानकारियों के आधार पर उस कंपनी का मूल्यांकन होता है. चूंकि लिस्टेड कंपनी रोज कारोबार करती रहती है और उसकी स्थितियों में रोज कुछ न कुछ बदलाव होता है, इस मूल्यांकन के आधार पर मांग घटने-बढ़ने से उसके शेयरों की कीमतों में उतार-चढाव आता रहता है. अगर कोई कंपनी लिस्टिंग समझौते से जुड़ी शर्त का पालन नहीं करती, तो उसे सेबी BSE/NSE से डीलिस्ट कर देती है. शायद आपको पता हो, विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों में शामिल वारेन बफे भी शेयर बाजार (Stock Market) में ही निवेश कर अरबपति बने हैं।
9.शेयर मार्केट के कार्य
कंपनियां अपने शेयर्स की स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग करवाकर IPO लाती है और अपने शेयर्स स्वंय द्वारा निर्धारित किये हुए मूल्य पर Public को Issue करती हैं। एक बार IPO पूरा हो जाने के बाद Shares, Market में आ जाते हैं और स्टॉक एक्सचेंज और ब्रोकर्स के माध्यम से निवेशकों द्वारा आपस में ख़रीदे और बेचे जाते हैं।
Shares के Prices कैसे बदलते हैं
सबसे पहले ipo लाते समय शेयर्स के Price कंपनी निर्धारित करती हैं लेकिन एक बार आईपीओ पूरा हो जाने के बाद Shares का मूल्य निर्धारित करने में कंपनी का कोई Role नहीं होता और Shares के मूल्य स्वतन्त्र रूप से Shares की Demand और Supply के आधार पर Stock एक्सचेंज द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। अगर ख़रीदे जाने वाले Shares की तुलना में बेचे जाने वाले Shares की संख्या कम होगी तो Shares के Price बढ़ेंगे और अगर बेचे जाने वाले Shares की तुलना में ख़रीदे जाने वाले Shares की संख्या कम होगी तो Share Price कम होगी। शेयर मार्केट में रजिस्टर्ड होने के बाद कंपनियों को समय-समय पर सभी महत्वपूर्ण जानकारियां निवेशकों के साथ साझा करनी होती हैं और इसी जानकारियों के आधार पर निवेशक कंपनियों का मूल्यंकन करते हैं। इस मूल्यांकन के आधार पर शेयर्स की Demand और Supply घटने-बढ़ने से Shares के Price Change होते हैं।
बुल मार्केट (Bull Market)
BullMarket बाजार की वो वित्तीय स्थिति है जो कि निवेशक के आत्मविश्वास, आशावाद और सकारात्मक उम्मीदों को दर्शाता है। बुल मार्केट आम तौर पर शेयर बाजार से संबंधित होता है, लेकिन यह सभी वित्तीय बाजारों जैसे मुद्राओं, ब्रांडों, वस्तुओं आदि पर लागू होता है। बुल मार्केट के दौरान, अर्थव्यवस्था में सब कुछ आश्चर्यजनक रूप से ऊपर की और बढ़ता है, जैसे जीडीपी बढ़ना, नौकरी में वृद्धि, स्टॉक की बढ़ती कीमतें आदि।सरल भाषा में अगर कहा जाये तो बुल मार्केट अक्सर शेयरों को ओवरवैल्यूएशन (Over Valuation) की ओर ले जाता हैं क्योंकि निवेशक अत्यधिक आशावादी होते हैं और मानते हैं कि स्टॉक हमेशा ऊपर जाएगा |
बेयर मार्केट (Bear Market)
Bull Market के विपरीत Bear Market है, जो आमतौर पर खराब अर्थव्यवस्था, कम नौकरियों, मंदी और शेयर की कीमतों में गिरावट को दर्शाता है । मंदी के बाजार के दौरान निवेशक का व्यवहार अत्यधिक निराशावादी होता हे। क्योंकि उन्हें डर है कि स्टॉक नीचे और नीचे जाएगा।
Bear Market निवेशकों के लिए कम समय के लिए लाभदायक शेयरों को चुनना कठिन बना देता है। मजेदार बात यह है की Bull का अर्थ होता है बैल और Bear का अर्थ होता है भालू। बुल और बेयर शब्द जो बाजार में उपयोग किए जाते हैं, इन जानवरों के उनके विरोधियों पर हमला करने के तरीके से लिया गया है। एक बैल अपने सींगों को हवा में ऊपर की ओर उछालता है, जबकि एक भालू अपने पंजे को नीचे की ओर झुकाता है। ये क्रियाएं एक बाजार की गति के लिए रूपक हैं। यदि प्रवृत्ति ऊपर की ओर है, तो यह एक Bull Market है। और, यदि रुझान नीचे की ओर है, तो यह एक Bear Market है।
ब्लू चिप कंपनी क्या है ?
शेयर मार्केट में चुनी गई सबसे बेहतर कंपनियों को ब्लू चिप कंपनी कहते है। ये मार्किट की सबसे विश्वशनीय और अधिक ट्रेड की जाने वाली कंपनिया होती है। ब्लू चिप कम्पनियाँ फ़ाइनेंशियल रूप से काफी मजबूत होती है जिससे मार्किट में होने वाले उतार-चढ़ाव से इन पर ज्यादा असर नहीं पड़ता है जैसे: Reliance, Infosys, HDFC, SBI,TATA, ये सभी स्टॉक एक्सचेंज पर चुनी गई ब्लू चिप कंपनियां है
पूँजीगत व्यय (CapEx) क्या हैं?
CapEx अर्थात् Capital Expenditure वो expenditure होते हैं जब किसी company या factory में fixed assets purchase की जाती है जैसे- Machinery, Furniture, Vehicle या कोई Equipment या फिर अगर कोई Machine पहले से ही है तो उसकी production capacity या उसकी life को बढ़ाने के लिए उस Machine को Upgrade कर दिया जाता है, इसके लिए बहुत सारे पैसे खर्च करने पड़ते हैं, इसे ही हम CapEx अर्थात् Capital Expenditure (पूँजीगत व्यय) कहते हैं।
इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि जैसे company में कोई machine है और उसका प्रयोग बहुत ज़्यादा किया जा रहा है वह बहुत पुरानी भी हो गयी है तो इसकी वजह से production थोड़ा slow होने लगा है या कम हो रहा है। अब इसकी जगह कोई नई Machine खरीदकर रख देना जिससे कि वह production ज़्यादा करने लगे या बढ़ जाये, तो ये जो Expenses किये जाते हैं ये Capital nature के होते हैं और इसे हम Capital Exp (पूँजीगत व्यय) कहते हैं।
इस प्रकार जब भी कोई Company, Assets के लिए बड़ा Expense करती हैं जिसका फायदा उसे आने वाले कई सालों तक मिलता है तो ये Expenditure पूँजीगत व्यय कहलाते हैं। ये Expenses कभी-कभी ही किये जाते हैं ना कि बार-बार किये जाते हैं।
ईपीएस (EPS) क्या होता है?
EPS (Earning Per Share) एक ऐसा नंबर होता है, जो यह बताता है कि एक निश्चित समय अंतराल में एक कंपनी अपने हर सामान्य शेयर पर कितने रुपए का मुनाफा कमा रही है।
निवेशको के लिए ईपीएस एक बहुत ही महत्वपूर्ण नंबर होता है, जो कंपनी के Earning Power को बढ़ाता है और जिस भी कंपनी का Earning Power जितना ज्यादा होता है, उतना ही उस कंपनी के Share का Price बढ़ सकता है।
EPS के आधार पर ही Price earning ratio और Dividend Payout की गणना भी की जाती है। यह भी पता किया जा सकता है कि एक कंपनी खुद के हर एक शेयर के लिए कितना पैसा कमाती है। सरल शब्दों में अगर बात की जाए तो ईपीएस की मदद से हम यह भी पता लगा सकते हैं कि प्रत्येक Share के हिस्से में कितना Profit आना चाहिए।
ROE क्या होता है?
ROE (Return On Equity) किसी भी कंपनी में निवेश पर कितना रिटर्न मिला यह बताती है। यानि किसी भी कंपनी में Equity यानि निवेशक और मालिक के 1 रुपए के निवेश पर कितना रिटर्न मिला यह जान सकते है। किसी कंपनी का ROE से हमें यह पता चलता है की हमें उस कंपनी में निवेश करना चाहिए या नहीं। मतलब जिस कंपनी का ROE जितना अधिक होता है, वह कंपनी निवेश के लिए उतना ही अच्छा होती है वैसे ROE की कोई फिक्स वैल्यू नहीं है, लेकिन अगर आप शेयर बाज़ार मे किसी शेयर मे निवेश कर रहे है, तो आपको ROE 20% से 25% मिले यह देखना चाहिए।
ROCE क्या होता है?
ROCE (Return on Capital Employed) ऐसा Financial Ratio है, जो हमें ये बताता है की किसी Business में लगे Total Capital पर कंपनी कितना Profit, Earn कर रही है। या इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है की कंपनी अपने पूँजी को कितने अच्छे ढंग से उपयोग कर रही है, Profit बनाने के लिए यह Profit कम से कम क़र्ज़ के ब्याज से ज्यादा होना चाहिए तभी निवेशकों को कुछ रिटर्न मिलेगा। वर्ना सिर्फ ब्याज भरने में ही सारा मुनाफा चला जाएगा। और अगर कंपनी क़र्ज़ के ब्याज से भी कम रिटर्न दे रही है, तो कंपनी को Reserves & Surplus में से क़र्ज़ का ब्याज चुकाना पड़ेगा। जो की निवेशकों के लिए नुकसान की बात है।
एक निवेशक के तौर पर हमें किसी भी कंपनी में निवेश के लिए ROCE जरूर देखना चाहिए। अगर किसी कंपनी का ROCE 20% या 20% से अधिक हो तो वह निवेश के लिए एक अच्छा विकल्प है !
शेयर और डिबेंचर में अंतर
1. शेयर किसी कंपनी का कैपिटल होता है किन्तु डिबेंचर किसी कंपनी का डेब्ट (debt) होता है.अतः कोई शेयर होल्डर किसी कंपनी का एक हिस्सा होता है, जबकि डिबेंचर होल्डर कम्पनी का हिस्सा नहीं होता. डिबेंचर से यह भी पता लगता है कि कंपनी किसी ऋण में नहीं है.
2.किसी शेयर का डिविडेंड कंपनी के तात्कालिक लाभ पर निर्भर करता है, किन्तु डिबेंचर में निवेशक को इस बात से अलग ब्याज प्राप्त होता है कि कंपनी लाभ में है या घाटे में.
3.रेडीमेबल प्रेफेरंस शेयर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के प्राप्त नहीं हो सकते, किन्तु डिबेंचर की राशि एक निश्चित समय के पूरे हो जाने पर अपने एक्सपायरी डेट के समय डिबेंचर होल्डर को सौंप दी जाती है|
4. शेयर में किसी शेयरहोल्डर को लाभ के तौर पर डिविडेंड प्राप्त होता है, जबकि डिबेंचर में निवेशक को ब्याज प्राप्त होता है|
5. शेयर होल्डर का कंपनी के एसेट पर किसी तरह का चार्ज नहीं होता है, जबकि डिबेंचर होल्डर का किसी कंपनी के सभी एसेट अथवा किसी निश्चित एसेट पर चार्ज होता है. शेयर के लिए किसी भी तरह के सिक्यूरिटी चार्ज जारी नहीं किये जाते हैं, किन्तु डिबेंचर के लिए सिक्यूरिटी चार्ज ज़ारी किये जाते हैं.
शेयर मार्केट कैसे सीखे
शेयर मार्केट बुक इन हिंदी
शेयर मार्केटिंग कैसे करें
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