IPO क्या है?
आईपीओ का मतलब इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग्स है। इसके लिए कंपनियां बकायदा शेयर बाजार में अपने को लिस्टेड कराकर अपने शेयर निवेशकों को बेचने का प्रस्ताव लाती हैं। कारोबार बढ़ाने या अपने दूसरे खर्चों को पूरा करने के लिए कंपनी कई तरीकों से रकम जुटाती है। पहली बार आम लोगों के बीच शेयर उतारने की प्रक्रिया इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) पेशकश कहलाती है। कई बार सरकार विनिवेश की नीति के तहत भी आईपीओ लाती है। ऐसे में किसी सरकारी कंपनी में कुछ हिस्सेदारी शेयरों के जरिए लोगों को बेची जाती है।
IPO के प्रकार
IPO को दो तरह से बांटा जा सकता है और इसे दो भागों में बांटने का कारण उसकी कीमतों का निर्धारण होता है-
- Fix Price Issue or Fix Price IPO
- Book Building IPO
- फिक्स प्राईस आईपीओ
आईपीओ जारी करने वाली कंपनी आईपीओ जारी करने से पहले इनवेस्टमेंट बैंक (Investment Bank) के साथ मिलकर आईपीओ के प्राईस के बारे में चर्चा करती है। इनवेस्टमेंट बैंक के साथ मिटिंग में कंपनी आईपीओ का प्राईस डिसाइड (Decide) करती है। उस फिक्स प्राईस पर ही कोई भी इनवेस्टर आईपीओ को सबस्क्राईब कर सकते हैं। आप केवल उसी प्राइस पर आईपीओ खरीद सकते हैं जो प्राईस निर्धारित किए गए है।
बुक बिल्डिंग आईपीओ
इसमें कंपनी इनवेस्टमेंट बैंक (Investment Bank) के साथ मिलकर आईपीओ का एक प्राईस बैंड (Price Band) डिसाइड करती है। जब आईपीओ की प्राईस बैंड डिसाइड हो जाती है उसके बाद ही इसे जारी किया जाता है। इसके बाद डिसाइड किए गए प्राईस बैंड में से इनवेस्टर अपनी बिड सबस्क्राईब (Subscribe) करते हैं।
बुक बिल्डिंग आईपीओ के प्राईस बैंड में दो तरह के होते हैं-
प्राईस बैंड में अगर आईपीओ का प्राईस कम है तो फ्लोर प्राईस (Floor Price) कहते हैं।
अगर आईपीओ का प्राईस ज्यादा है तो इसे कैप प्राईस (Cap Price) कहते हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि बुक बिल्डिंग आईपीओ में कैप प्राईस (Cap Price) और फ्लोर प्राईस (Floor Price) में 20% का अंतर रखा जा सकता है।
IPO में कैसे करें निवेश
अगर हमें Share Bazaar में भविष्य बनाना है तो हमें आईपीओ की जानकारी अवश्य होनी ही चाहिए। वैसे तो IPO को एक जोखिम भरा Investment माना गया है, क्योंकि इसमें कम्पनी के शेयरों के प्रगति से संबंधित कोई आंकड़े या जानकारी आम लोगों के पास नहीं होती है, फिर भी जो व्यक्ति पहली बार Share Bazaar में निवेश करता है उसके लिए IPO Investing एक बेहतर विकल्प है। लेकिन इसके लिए हमें कम्पनी के बारे में इंटरनेट पर ज़रुर देख लेना चाहिए आजकल बहुत सारी वेबसाइट हैं जो आने वाले IPO की सारी जानकारी उपलब्ध कराती हैं और कुछ वेबसाइट हैं जो IPO के बारे में लोगों का रुझान भी बताती हैं.
जब भी हम IPO खरीदने के लिए किसी कंपनी का चयन करते हैं तो हमे कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए, सबसे पहले हमारा ब्रोकर अच्छा होना चाहिए। कोशिश करें कि ब्रोकर के साथ मिलकर कंपनी का चयन करें। जो कंपनी चुन रहे हैं उससे तीन-चार अन्य कंपनियों की भी तुलना करें। कुछ दिन तक इन सभी कंपनियों की प्रगति को देखने के बाद ही निवेश करें। रेटिंग एजेंसी की राय भी बहुत मायने रखती है। कंपनी के आईपीओ की कीमत भी देखें, बाजार में कंपनी के प्रमोटर की साख देखें और दूसरे निवेशकों से कंपनी के IPO को लेकर जानकारी लेते रहें।
IPO की कीमत
IPO की शेयर प्राइसिंग कीमत दो तरह से तय होती है:
प्राइस बैंड
फिक्स प्राइसिंग
प्राइस बैंड (Price Band)
ज्यादातर कंपनियां जिन्हें आईपीओ लाने की इजाज़त है, वे अपने शेयरों की कीमत तय कर सकती हैं। लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर और कुछ दूसरी क्षेत्रों की कंपनियों को SEBI और बैंकों को Reserve Bank (रिजर्व बैंक) से अनुमति लेनी होती है। कंपनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बुकरनर के साथ मिलकर प्राइस बैंड तय करता है। भारत में कुल 20 फीसदी प्राइस बैंड की इजाज़त है। इसका मतलब है कि बैंड की अधिकतम सीमा फ्लोर प्राइस से 20 फीसदी से ज्यादा ऊपर नहीं हो सकती है।
फिक्स प्राइसिंग (Fix Pricing) फिक्स प्राइसिंग पर आईपीओ अब बहुत कम होते हैं। इस प्रक्रिया में कंपनी अपनी परिसंपत्तियों, देनदारियों और हर वित्तीय पहलू का मूल्यांकन करके, Shares का एक निश्चित मूल्य निर्धारित कर देती है। यह मूल्य Issue के पहले दिन से आखरी दिन तक निश्चित (Fixed) होता है, और उसी मूल्य पर शेयर की बिक्री होती है। प्रतिभूतियों की मांग कितनी है, इसका पता Issue के अंतिम दिन ही चलता है। इसके बाद मांग के हिसाब से निर्गमन कर दिया जाता है।
IPO में Invest
कोई भी वयस्क या अवयस्क और स्वस्थ मस्तिष्क वाला व्यक्ति जो 2 लाख रुपए तक का निवेश करना चाहता है वह रिटेल निवेशक के रूप में आई पी ओ में निवेश कर सकता है। आपके पास अगर Pan Number, Bank Account और Demat Account है तो आप किसी भी कंपनी के आई पी ओ में निवेश करने के योग्य माने जाते हैं। आप चाहें तो कंपनी के शेयर्स को एक सर्टिफिकेट रूप में Physical Form में अपने पास रख सकते हैं या अगर आप चाहें तो Demat Account में भी इनको ट्रान्सफर कर सकते हैं।
IPO लाने के कारण
विस्तार के लिए
जब किसी कंपनी को लगता है कि वह लगातार आगे बढ़ रही है और उसे ज्यादा विस्तार की जरूरत है यानि अब कंपनी को दूसरे शहरों में भी विस्तार करना है और इसके लिए उसे लोगों की भी जरूरत है तो इस स्थिति में कंपनी आईपीओ जारी करती है। कंपनी के विस्तार के लिए वैसे तो वह बैंक लोन का सहारा भी ले सकती है, लेकिन बैंक लोन को कंपनी को एक निश्चित समय पर निश्चित ब्याज (Interest) के साथ लौटाना भी होता है। जबकि अगर कंपनी आईपीओ के जरिए फंड इकट्ठा करती है तो उसे किसी को न तो वह पैसा लौटाना पड़ता है और न ही किसी तरह का ब्याज देना पड़ता है। यह तो हुआ कंपनी का फायदा। अब आईपीओ खरीदने वाले लोगों के फायदे की बात करते हैं। जो भी इनवेस्टर आईपीओ में इनवेस्ट करते हैं उन्हें उस खरीदे गए आईपीओ के बदले में कंपनी में कुछ प्रतिशत की हिस्सेदारी मिल जाती है। यानि अगर किसी कंपनी ने कुछ शेयर आईपीओ के लिए निकाले हैं और आपने उन शेयर्स का दो प्रतिशत हिस्सा खरीदा है तो आप उस कंपनी के दो प्रतिशत हिस्से के मालिक होते हैं। इस तरह से आईपीओ से कंपनी और इनवेस्टर दोनों को फायदा होता है।
कर्ज कम करने लिए
जब कंपनी ज्यादा कर्ज में होती है तो इस स्थिति में भी कंपनी आईपीओ जारी करती है। ऐसे में कंपनी किसी बैंक से लोन लेकर कर्ज की भरपाई करने से बेहतर समझती है कि कंपनी के कुछ शेयर बेच दिए जाए और कर्ज का भुगतान किया जाए। ऐसे में कंपनी के कर्ज का भी भुगतान हो जाता है और कंपनी को नए इनवेस्टर भी मिल जाते हैं और इनवेस्टर को कंपनी में कुछ हिस्से का मालिक बनने का मौका भी मिल जाता है।
किसी नए प्रोडक्ट या सर्विस की लॉंच के लिए
आईपीओ जारी करने की एक और वजह होती है। कंपनी द्वारा अपने नए प्रोडक्ट्स और सर्विस का लॉंच करना। जब कभी कोई कंपनी किसी नए प्रोडक्ट्स या सर्विस की शुरूआत करती है तो कंपनी चाहती कि उस सर्विस या प्रोडक्ट्स का प्रोमोशन हो और वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। इसलिए कंपनी आईपीओ या इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) जारी करती है।
प्रॉस्पेक्टस क्या हैं?
Prospectus, किसी भी आईपीओ का सबसे महत्वपूर्ण Document (दस्तावेज) होता हैं। जब भी कोई Company अपना IPO जारी करती हैं तब सबसे पहले वह Public Issue का Prospectus जारी करती हैं। यह एक प्रकार का Legal Document होता हैं जिसमें Company और Public Issue या IPO से सम्बंधित Detailed Information होती हैं जैसे कितने Shares जारी किये जाएंगे, Price क्या होती, IPO से प्राप्त पैसे का क्या उपयोग किया जाएगा, Director की जानकारी, Company के पिछले Profit और Financial डाटा, निवेशको की Risk, प्रमोटर्स के शेयर्स आदि।
यह प्रॉस्पेक्टस SEBI से Apporved होता हैं और इसमें आपको IPO और Company से सम्बंधित हर प्रकार की जानकारी मिल जाएगी। IPO में Invest करने से पहले Prospectus की एक एक जानकारी को अच्छे से समझ लेना चाहिए।
आइपीओ (IPO) का फुल फॉर्म होता है- इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering). एक कंपनी जब अपने समान्य स्टॉक या शेयर को पहली बार जनता के लिए जारी करता है तो उसे आईपीओ कहते हैं. लिमिटेड कंपनियों द्वारा आईपीओ इसलिए जारी किया जाता है जिससे वह शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो सके. शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के बाद कंपनी के शेयरों की खरीद शेयर बाजार में हो पाती है. कंपनी निवेश या विस्तार करने की हालत में फंडिंग इकट्ठा करने के लिए आईपीओ जारी करती है.आईपीओ में जब एक कंपनी अपने सामान्य स्टॉक या शेयर पहली बार जनता के लिए जारी करती है तो उसे IPO कहा जाता है. एक फर्म (Firm) के IPO शुरू करने के दो मुख्य कारण पूंजी जुटाना और पूर्व निवेशकों को समृद्ध करना है!
कंपनी के लिए आईपीओ का अर्थ-
किसी भी कंपनी द्वारा आईपीओ का आवेदन करने के बाद पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से परिणाम सामने निकल कर आते है, जो निम्नलिखित है:
आईपीओ के माध्यम से कोई भी कम्पनी अपनी पूँजी बढ़ा सकती है और उसे विभिन्न ज़रूरतों के लिए उपयोग में ला सकती है।
जिन कंपनियों के पास कम धनराशि और छोटा बजट होता है, एक आईपीओ के माध्यम से उसे सुधारा जा सकता है और कंपनी की छवि या ब्रांड इमेज को भी ठीक किया जा सकता है।
लोगों का कंपनी के प्रति भरोसा बढ़ जाता है।
कंपनी के प्रबंधन की छवि उभर कर आती है और उद्योग जगत में उसका नाम होता है।
इसके साथ ही, कंपनी के कुछ तथ्य और जानकारी के सम्बन्ध में निम्नलिखित बदलाव आते हैं :
कंपनी के बहीखाते (Balance Statement) और बैलेंस शीट (Balance Sheet) सार्वजनिक हो जाती है।
कंपनी को सेबी द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार ही काम करना होता है।
समय समय पर ऑडिट और जांच पड़ताल के लिए उपलब्ध रहना पड़ता है ताकि बाज़ार में उसकी अच्छी छवि बनी रह सके
निवेशकों के लिए आईपीओ का अर्थ
आईपीओ के माध्यम से ट्रेडर और निवेशक, शेयर बाज़ार से अच्छे मुनाफे कमाने की उम्मीद रख सकते हैं।
एक इंट्राडे ट्रेडर, आईपीओ के माध्यम से जल्द लाभ कमाने की उम्मीद रखता है और एक निवेशक इसे एक लम्बे समय के निवेश के तौर पर लेकर चलता है।
इसलिए यदि आप एक ऐसे निवेशक हैं जो की अपने पैसे को लम्बे समय के लिए निवेश में बनाए रखने की सोच रहा है तो आपको आईपीओ सम्बंधित पूरी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए और कंपनी के विषय में सब समझ लेना चाहिए।
इस समय भारतीय शेयर बाज़ार नई ऊंचाईयों को छू रहा है। यदि आप निवेश के बारे में सोच रहें हैं तो यह जानना बहुत ज़रूरी है कि आप अपनी मेहनत की कमाई को किस तरह और कौन से क्षेत्र में निवेश करने जा रहें हैं।
आईपीओ के प्रकार-
आईपीओ दो तरह के होते हैं:—
1. फिक्स्ड प्राइस आईपीओ (Fixed Price IPO)
2. बुक बिल्डिंग आईपीओ (Book Building IPO)
फिक्स्ड प्राइस आईपीओ (Fixed Price IPO)
फिक्स्ड प्राइस IPO को इश्यू प्राइस के रूप में संदर्भित किया जा सकता है जो कुछ कंपनियां अपने शेयरों की प्रारंभिक बिक्री के लिए निर्धारित करती हैं. निवेशकों को उन शेयरों की कीमत के बारे में पता चलता है जिन्हें कंपनी सार्वजनिक करने का फैसला करती है. इश्यू बंद होने के बाद बाजार में शेयरों की मांग का पता लगाया जा सकता है. यदि निवेशक इस IPO में हिस्सा लेते हैं, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे आवेदन करते समय शेयरों की पूरी कीमत का भुगतान करें.
बुक बिल्डिंग आईपीओ (Book Building IPO)
बुक बिल्डिंग के मामले में IPO शुरू करने वाली कंपनी निवेशकों को शेयरों पर 20% मूल्य बैंड प्रदान करती है. इच्छुक निवेशक अंतिम कीमत तय होने से पहले शेयरों पर बोली लगाते हैं. यहां निवेशकों को उन शेयरों की संख्या निर्दिष्ट करने की आवश्यकता है जिन्हें वे खरीदना चाहते हैं और वह राशि जो वे प्रति शेयर भुगतान करने को तैयार हैं. सबसे कम शेयर की कीमत को फ्लोर प्राइस के रूप में जाना जाता है और उच्चतम स्टॉक मूल्य को कैप प्राइस के रूप में जाना जाता है. शेयरों की कीमत के संबंध में अंतिम निर्णय निवेशकों की बोलियों द्वारा निर्धारित किया जाता है!
IPO लाने का उद्देश्य-
जब किसी कंपनी को धन की आवश्यकता होती है तो कंपनी के पास दो रास्ते होते है – या तो वो बैंक से क़र्ज़ ले या फिर वो जनता से धन जुटाएं अब, जब कोई कंपनी इक्विटी में जनता से पूँजी जुटाना चाहती है तो वह शेयर मार्केट में सूचीबद्ध (Listed) होकर अपने कॉमन स्टॉक (Common Stock) को पब्लिक के सामने पहली बार जारी (Issue) करती है इसी प्रक्रिया को Initial Public Offerings (IPO) कहा जाता है।
आईपीओ धनराशि का इस्तेमाल आईपीओ के माध्यम से जुटाई गई धनराशि (Fund) आमतौर पर निम्नलिखित कारणों में इस्तेमाल किया जाता है।
1. कंपनी के विस्तार
2. तकनीकी विकास,
3. नई संपत्ति खरीदने,
4. कर्जे समाप्त करने इत्यादि
जैसे ही एक आईपीओ लांच किया जाता है या आर्थिक जगत में उसका प्रस्ताव लाया जाता है, कंपनी के शेयर विभिन्न निवेशकों और कारोबारियों को उपलब्ध हो जाते हैं इन शेयर्स को सेकेंडरी मार्केट से ख़रीदे और बेचे जा सकते हैं।
क्या आईपीओ हमेशा सफल होते है?
ऐसा जरुरी नहीं है, ऐसे है जब कोई आईपीओ लॉन्च होने के बाद कंपनी के लिए किसी डिजास्टर जैसे परिणाम सामने आते है।
ज्यादातर समय, आईपीओ लॉन्च होने के समय कई बिज़नेस पीछे खींच लेते है। कई बार, बिडिंग अवधि को बढ़ा देते है और कुछ दुर्लभ मामलों सेबी द्वारा कम सब्सक्रिप्शन के तहत आईपीओ कर दिया जाता है।
उदाहरण के लिए, जब फेल हुए आईपीओ की बात आती है तो सबसे पहले नाम रिलायंस पॉवर की आती है। इस आईपीओ ने इतना ख़राब प्रदर्शन किया की ज्यादातर निवेशकों को लिस्टेड होने वाले दिन ही लगभग 20 परसेंट एक नुकसान उठाना पड़ा।
इसके पीछे मुख्य कारण था, मार्केट मोमेंटम और निवेशकों का मार्केट के प्रति कोई रुझान नहीं देखना
कुछ अन्य असफल हुए आईपीओ में Cafe Coffee Day, Adlabs, ICICI Prudential इत्यादि शामिल है।इसलिए, किसी भी निवेशक को सबसे पहले यह देखना चाहिए की क्या आईपीओ निवेश करने योग्य है।
इस प्रकार, आपको आईपीओ में अप्लाई करने से पहले, यह सुनिश्चित करना चाहिए की आप आईपीओ की मूलभूत जानकारी से अवगत हो।
आईपीओ से सम्बंधित शब्दावली
IPO की समीक्षा में हम आपके लिए आईपीओ से सम्बंधित शब्दावली लेकर आये है, जो आपके लिए सहायक होगी।
ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भी कोई कंपनी अपने आईपीओ को बाज़ार में लाती हैं तो उसकी बोली लगते समय कुछ विशेष तकनीकी शब्दावली का उपयोग होता है, जो इस प्रकार है: चलिए इसे एक-एक कर के समझते हैं:
प्राइस बैंड (Price Band): सामान्य रूप से प्राइस बैंड वह दायरा होता है जिसके अनुसार आप एक आईपीओ के लिए बोली लगा सकते हैं।
बिड लॉट (Bid Lot)– बिड लाट का तात्पर्य उस न्यूनतम शेयर मात्रा से होता है जिसके अनुसार या फिर उसके गुणाकार (Multiple) में ही ग्राहकों को आईपीओ के लिए बोली लगानी होती है।
रजिस्ट्रार (Registrar)- रजिस्ट्रार उस विशेष कंपनी द्वारा नियुक्त किया जाता है जिसे की आईपीओ के काम से सम्बंधित जिम्मेदारी दी जाती है। वह सेबी के अनुसार निवेश करवाना, ग्राहकों के पैसे की वापसी और पूरी आईपीओ प्रक्रिया को संभालता है। इशू साइज़ (Issue Size): इससे तात्पर्य है उन कुल शेयर की मात्रा का जिन पर आप बोली लगा सकते हैं।
क्यूआईबी (QIB) – जितना शेयर प्रतिशत निवेशक संस्थाओं के बोली लगाने के लिए रखा जाता है, उसे QIB कहते हैं।
एनआईबी (NIB) – जितना शेयर प्रतिशत गैर निवेशक संस्थाओं (Non-Investor Institution) के बोली लगाने के लिए रखा जाता है, उसे NIB कहते हैं।
रिटेल (Retail) - जितना शेयर रिटेल निवेशकों के बोली लगाने के लिए रखा जाता है, उसे रिटेल कहते हैं।
लिस्टिंग (Listing) - जिन सूचियों पर आईपीओ खुलता है और कारोबार के लिए उपलब्ध होता है उसे, लिस्टिंग कहते हैं।